माँ अहल्या शिक्षा न्यास

भारतीय आर्ष काव्य में अनेक अनुकरणीय स्त्री रत्न है।आर्ष काव्य में वर्णित नारी रत्नों का उदात्त चरित्र सर्वदा आदर्श और अनुकरणीय होने के साथ विलक्षण भी हैं। आर्ष काव्य में एक नारी चरित्र अहल्या है जो बड़ा ही विलक्षण है।जो विशिष्ट चेतना से युक्त होने के कारण प्रातः स्मरणीय माना जाता है।
सामान्य परिचय

सामान्य परिचय

शुभंकर (लोगो) माँ अहल्या शिक्षा न्यास के शुभंकर की अवधारणा श्रवण कुमार उपाध्याय एव महेंद्र उपाध्याय ने बनाई। जिसको साकार रूप अवदेश उपाध्याय ने दिया। शुभंकर स्वास्तिक का आकार लिये हुए है।जिसमें माँ अहल्या शिक्षा न्यास के चार स्तम्भ को दर्शाया गया है।जो शिक्षा,संस्कृति,सेवा,और संस्कार हैं।चार दल कमल के भीतर कमल के भीतर न्यास का ध्येय वाक्य “ब्रह्म विद्वान यथा” अंकित किया गया है।शुभंकर के मध्य में कुम्भ रखा गया है।कुम्भ मनुष्य की सांसारिक बाधाओं को दूर करते हुए उसके जीवन को ज्ञानामृत से परिपूर्ण कर देता है।इसलिए इसमें कुम्भ दर्शाया गया है। “कुम्भ” शब्द की मीमांसा पांच ज्ञानेन्द्रिय, पांच कामेन्द्रिया,एक चित्त और एक मन से की गई है।इन द्वादश इन्द्रियों पर विजय पाने से ही घट”कुम्भ” यानि शरीर का कल्याण होता है। कुम्भ व्यक्ति को ऐश्वर्य सम्पन्न बनाने की एक संकल्पना है।कुम्भ पुरूषार्थ चतुष्टय अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति का ध्योतक है। ” चतुरः कुम्भां चतुर्णा ददामि क्षीरेण पूर्णान् उदकेन दध्मः”। कलश के साथ माँ अहल्या का विग्रह दर्शाया गया है।

श्रवण कुमार उपाध्याय
शुभंकर
महेंद्र कुमार उपाध्याय
शुभंकर
नवनीत सांखी
शुभंकर
दुष्यंत राणेजा
शुभंकर
अशोक राणेजा
शुभंकर
सामान्य परिचय

अहल्या का सामान्य परिचय

आर्ष काव्य में आदर्श स्त्री रत्न अहल्या
भारतीय आर्ष काव्य में अनेक अनुकरणीय स्त्री रत्न है।आर्ष काव्य में वर्णित नारी रत्नों का उदात्त चरित्र सर्वदा आदर्श और अनुकरणीय होने के साथ विलक्षण भी हैं। आर्ष काव्य में एक नारी चरित्र अहल्या है जो बड़ा ही विलक्षण है।जो विशिष्ट चेतना से युक्त होने के कारण प्रातः स्मरणीय माना जाता है।
अहल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा।
पञ्चकन्याः स्मरेनित्यम् महापातकनाशम्।।

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